Sunday, October 29, 2017

निकाय चुनाव और भाजपा की रणनीति |

उत्तर प्रदेश में स्थानीय निकाय चुनावों की घोषणा हो गयी।
भारतीय जनता पार्टी शुरु से ही इन चुनावों में अपने सिंबल पर प्रत्याशी उतारती रही है।
स्थानीय निकाय चुनाव में दो प्रकार के सीटों के लिए चुनाव होते हैं एक तो वार्ड मेंबर के लिए और दूसरा चेयरमैन के लिए।
मुझे अब लगता है कि भारतीय जनता पार्टी को वार्ड मेंबरों के चुनाव में सिंबल नहीं जारी करना चाहिए और अपना सारा का सारा श्रम नगर पालिका, नगर परिषदों के चेयरमैन की जीत पर लगाना चाहिए।
सबसे ज्यादा दिक्कत और विवाद वार्डों के चुनावों में होते हैं क्योंकि वार्ड 1-2 किलोमीटर की परिसीमन में ही होते हैं | अतः कई बार तो एक ही मोहल्ले से और एक ही विचारधारा के 4-4 5-5 लोग वार्ड मेंबर बनने के लिए अपना भाग्य आजमाना चाहते हैं |
फिलहाल भारतीय जनता पार्टी सत्ता में है, और मैं देख रहा हूं कि प्रत्येक वार्ड में पार्टी के कार्यकर्ता टिकट की मांग कर रहे हैं । चूँकि #BJP अपने सिंबल पर वार्ड मेंबरों के चुनाव लड़ाती रही है, (और फिलहाल उसकी इस नीति में कोई बदलाव नहीं आया है) इसलिए हरेक वार्ड से भाजपा के सिंबल पर चुनाव लड़ने के लिए भाजपाई अपनी अपनी दावेदारी प्रस्तुत कर रहे हैं।
भाजपा में मोदी युग के आरंभ के बाद बहुत परिवर्तन आया है | 2014 से लेकर 2017 तक भारतीय जनता पार्टी का आधार बहुत बढ़ा है और बहुत से काबिल और मेहनती लोग दूसरे दलों को छोड़कर पूरी तन्मयता के साथ भाजपा में जुड़े हैं और मेहनत कर रहे हैं।
इसलिए वार्ड चुनाव में मुझे डर है कि टिकट वितरण के बाद बहुत गहरे तक कार्यकर्ताओं के बीच में मतभेद पनप जाएंगे।
मैं देख रहा हूं कि अलग-अलग समीकरणों को साधने के बाद भी पार्टी नेतृत्व सभी को संतुष्ट नहीं कर सकता और कुछ स्थानों पर टिकट देने में गलती अवश्य होगी।
हालांकि अभी टिकटों की घोषणा नहीं हुई है लेकिन फिर भी मैं यह बता दूं कि कुछ जगह ऐसी स्थिति बन रही है की आधिकारिक प्रत्याशी से ज्यादा भारी कई दुसरे प्रत्याशी हैं |
अतः मैं तो यही चाहूँगा कि सभासद के स्तर पर पार्टी अपना सिंबल न जारी करे और कार्यकर्ताओं को जोर आजमाइश करने दे |