Saturday, December 12, 2015

भाषा और जुबान |

मुझे उर्दू नहीं आती 
तुझे हिंदी नहीं आती 
मैं भी कराह रहा 
तू भी कराह रहा,
चल डोर पकड़ते हैं 
दर्द के जुबान की |

Thursday, November 26, 2015

chopsticks

Tried many times to hold chop sticks. took some video lessons too but failed. very irritating.
प्रिय आमिर खान, यहाँ का खाकर आप इस लायक बने कि समाज में आपकी बात सुनी जाये, और आपको इस देश से पलायन करने का विचार आता है ??
आपके व्यग्तिगत जीवन की गंदगियों को भी इस देश के लोगों ने नजर-अंदाज करते हुए आपकी कला का सम्मान किया, कभी भेदभाव नहीं किया और आपकी फिल्मों को खूब पसंद किया |
इस देश के किस सिनेमाघर में आपकी फिल्मों का विरोध हुआ? किस संगठन ने आपसे रंगदारी मांग ली, अगर माँगा भी होगा तो दुबई बैठे किसी "भाई" ने ही माँगा होगा |
आमीर भईया अगर यहाँ पर intolerance है और पलायन करने का विचार आता है तो चुन लो इराक या सीरिया वहां आपको जन्नत मिल सकती है |
और हाँ अपने अदनान सामी भाई से भी कहते जाओ कि वह भारत की नागरिकता न लेकर आपके साथ ही किसी दुसरे देश में चला जाये ... फिर वहीँ आप लोग 'लिफ्ट' होजओगे |
जब उंगलियाँ टाइप करने में असमर्थ होजाएं तो समझो ठण्ड प्रचंड होगई |

सर्दियों में प्रातः काल एक लीटर कुनकुना पानी अन्दर से आनंद देता है लेकिन बार बार बहार भी भेजता रहता है... ‪#‎लघु_शंका‬

Sunday, November 15, 2015

युद्ध कर लें.. स्वयं से |

चलो
शांति हेतु,
युद्ध कर लें.. 
स्वयं से |

Monday, September 14, 2015

खब्बू, लतरी ... लेफ्टी !

मैं खब्बू हूँ | लिखना और खाना तो घरवालों ने डांट कर सिखा दिया.. बाकी काम जैसे ब्रश करना, गेंद फेंकना, आदि लतरी हाथ से ही चालू है smile emoticon
खब्बू एसोसिएशन जिंदाबाद smile emoticon
फ्रिज मेरे हिसाब से सही खुलता है दाहिने से दरवाजा खोलना और बाएं हाथ से सामान उठाना, किन्तु कैंची परेशान करती है |
बैटिंग राईट , बोलिंग लेफ्ट | सब्जी मैं दोनों हाथों से काट लेता हूँ... क्योंकि लिखने के कारन चाकू दाहिने से भी सहजता से पकड़ लेता हूँ |

Thursday, July 30, 2015

भईय्ये कहाँ थे अबतक ?? :)

भाजपा की जब सत्ता आजाती है तो इसका अल्पसंख्यक मोर्चा सक्रिय होजाता है और इसके सदस्यों की संख्या भी बढ़ने लगती है (?) सत्ता रहते-रहते ये भरपूर फायदा उठाते हैं (अटल युग का अनुभव) और सत्ता जाते ही ये अन्य 'सेकुलर' दलों के लिए काम करने लगते हैं |

अब अल्पसंख्यक मोर्चा फिर ऊँगली कटा कर शहीद होने का नाटक करने लगा है | #Rampur
 
किन्तु मोदी युग में शायद इनकी दाल न गले | होता यह है कि इनकी 'सक्रियता' से भावनात्मक रूप से जुड़े और सक्रिय कार्यकर्ता आहत अनुभव करता है और अपने आप को पार्टी की गतिविधियों से सीमित कर लेता है | चूँकि पार्टी सत्ता में होती है तो वह भी इन रूठे लोगों पर नजर रख नहीं पाती और संकट काल में उसे नुक्सान होजाता है |

रामपुर में भाजपा इसका अनुभव कर चुकी है जब 2009 लोकसभा चुनाव में सिर्फ साठ हजार मतों पर सिमट गयी थी पार्टी.
अमित शाह जी ने शायद इस बात को भांप लिया था और टिकट बंटवारे में इसका ख्याल रखा और भाजपा को इसका भरपूर लाभ भी मिला |
आशा करता हूँ कि अल्पसंख्यकों के सम्मान को बरक़रार रखते हुए मौका परस्तों को स्पष्ट संकेत दे दिए जाएँ | उनसे पूछा जाये कि "भईय्ये कहाँ थे अबतक ??" :)

Monday, June 8, 2015

जनता को आइना कौन दिखायेगा ?

जनता को आइना कौन दिखायेगा ??
जनता में भी तमाम विकृतियाँ आगई हैं, मुफ्तखोरी उनके रग रग में बस गयी है, जिसका फायदा राजनेता उठा रहे हैं, उन्हें भारत के खजाने में से साइकिल, चावल, टीवी, wifi मुफ्त में देकर अरबों खरबों की संपत्ति पर कुंडली मार लेते हैं |

चुनावी राजनीती करने वाले नेता लोग जनता को आइना नहीं दिखा सकते | वो काम तो गाँधी, जय प्रकाश नारायण जैसे लोग ही कर सकते हैं, किन्तु दुर्भाग्यवश इनके आंदोलनों को कोई न कोई शातिर अपने लिए इस्तेमाल कर लेता है |
अभी अन्ना को ही लीजिये, सब कुछ ठीक था लेकिन एक शातिर कजरी ने इस आन्दोलन को सैबोटाज कर लिया और परिणाम आपके सामने है |
अन्ना जनता को जिस गन्दगी से बचाना चाहते थे कजरी उसी गन्दगी (मुफ्त मुफ्त मुफ्त का नारा) के सहारे मुख्यमंत्री बनगए |

Saturday, June 6, 2015

आरक्षण |

यदि आप जाति के आधार पर आरक्षण लेकर सुविधा उठाएंगे तो फिर उसके ताने भी सुनने ही होंगे , स्वाभिमान कहाँ से आयेगा.
यदि आप निरपेक्ष भाव से समाज का उत्थान चाहते हैं तो आरक्षण को आर्थिक आधार पर कर देने में क्या गलत है ??
मैं दलित नहीं हूँ लेकिन अपने कई दलित मित्रों से गरीब हूँ. मेरे बच्चे की फीस मैं मुश्किल से दे पाता हूँ तो क्या मुझ पर तरस नहीं आती आपको?
क्या एक अधिकारी का बच्चा आरक्षण लेता रहेगा और एक उच्च जाति का गरीब सुविधाओं से वंचित रहेगा ?? यदि इतिहास में दलितों के साथ अन्याय हुआ तो क्या अब आप वही चक्र शुरू करना चाहते हैं ??
अंग्रेजों ने हमको पीटा , मारा, काटा, हम पर राज किया , तो क्या आज कोई अंग्रेज मिल जाये तो हम उसके साथ दुर्व्यवहार करें?? वो जमाना और था यह जमाना और है , आज हम भेदभाव नहीं करते और न ही चाहते हैं कि हमारे साथ भेदभाव हो |
जातिगत आधार पर जो आरक्षण है वह भी तो स्वयम दलितों में भेदभाव पैदा कर रहा है ... जो आगे निकल गए वे स्वयं अपने ही गरीब दलितों का हक़ मर कर आरक्षण का लाभ लिए जारहे हैं. इसलिए यदि सच्चा न्याय चाहते हो तो आर्थिक आधार को अपना लो और आरक्षण को सिर्फ पच्चीस पर्सेंट कर दो. यदि आपको भरोसा है कि आपकी जाती गरीब है तो ज्यादा लाभ उसे ही मिलेगा.
आरक्षण तो सिर्फ दस वर्ष के लिए था... तो फिर इसे अब क्यों बढवाना चाहते हो ??

पेंटिंग |

वो काफी दिनों से एक पेंटिंग बना रहा था | थोड़े दिनों बाद ही पता चल गया कि कोई ख़ास ज्ञान है नही उसे पेंटिंग बनाने का किन्तु उसके पास कैनवास, रंग और ब्रश सब कुछ था |

मेरे पास सिवाय कमियां निकालने के और कुछ काम नहीं था | मैं करता भी क्या, पेंटिंग बनाने का अधिकार तो उसे दिया गया था न |

धीरे धीरे लोगों ने भी महसूस किया कि ये नहीं बना सकते पेंटिंग, इनके बस की नहीं है, ये सिर्फ टाइम पास कर रहे हैं तो जूरी ने ये काम मुझे सौंप दिया | मेरी मजबूरी थी कि उस बेकार, बदरंग, अधबनी पेंटिंग को ही सुधारुं | और कोई विकल्प नहीं था | मुझे उसका थीम भी बदलना था, तो मैंने पहले उसमें ही सुधार करने का काम शुरू किया |
अभी चार दिन बीते नहीं कि वे ही ज़ालिम मुझसे सवाल कर रहे हैं कि पेंटिंग दिखाओ |
मैं क्या करूँ?? उन्हें अनसुना कर पेंटिंग पर अपना काम जारी रखूं या काम छोड़कर सफाई देता रहूँ?
...............................................................................................................................

मेरी इस कहानी से कहीं आपको देश (पेंटिंग), कांग्रेस और वर्तमान में मोदी तो नहीं याद आरहे ?
आ ही रहे होंगे | आखिर कांग्रेस से उस पेंटिंग बनाने का अधिकार छीन कर आपने ही तो मोदी को सौंपा है | :) 

Monday, May 18, 2015

गोला बारूद बनाम मेक इन इंडिया |

युद्ध बहुत महंगा होता है ... एक मिसाइल जो हम दागते हैं वह 10 करोड़ तक का हो सकता है | एक तोप का गोला भी लाखों का पड़ जाता है | बन्दुक से निकली एक गोली सैकड़ों रुपये की होती है | और इस सब का भण्डारण भी महंगा होता है |
जबकि एक स्कूल और अस्पताल का खोला जाना और उसे चलाया जाना अपेक्षाकृत सस्ता पड़ता है और उपयोगी भी रहता है |
हथियार बनाने वाली एक बहुत बड़ी लॉबी है जिसका धंधा ही सिर्फ डर और अविश्वास पर चलता है |
दो देशो या गुटों के बीच जब युद्ध होता है तो दोनों तरफ से लगभग एक ही 'मेक' के हथियार होते हैं और उनके 'मैन्युफैक्चरर' भी एक ही होते हैं |
यानी वे तो दोनों के यार हैं | बस पागलपन तो लड़ने वालों पर ही सवार होता है |

आजकल सुनने में आरहा है कि हमारे देश में सिर्फ 20 दिन का गोला बारूद ही बचा है और ऐसा माहौल बनाया जारहा है कि सरकार को अपना आयुध भंडार बढ़ाना चाहिए | ये हथियार लॉबी का ही प्रोपेगंडा होसकता है जो सोशल मीडिया के जरिये सरकार पर दबाव बनवा कर अपना माल बेचना चाह रही है | मोदी जी की प्राथमिकतायें अलग हैं और वे हथियार खरीद कर दलाली लेने के बजाये मेक इन इंडिया और डिजिटल इंडिया जैसे अपने महती कार्यक्रमों पर धन लगाना चाहते हैं |
#जयहिन्द 

Sunday, May 17, 2015

सर

गुरु और माता पिता अनंतकाल तक तो नहीं रह सकते इस धरा पर | उन्हें एक न एक दिन जाना ही होता है | इसमें कुछ भी असामान्य नहीं होता | किन्तु वे लोग जब भी जाते हैं अथवा जायेंगे ऐसा लगेगा जैसे थोडा सा "मैं " गया |

मैं जो बना वह अपने गुरुओं और बड़ों का का 'थोडा-थोडा' हूँ |
मैं थोडा कुमार सर बना, थोडा द्विवेदी सर बना, थोडा श्रीवास्तव सर बना , थोडा वर्मा सर बना !
किसी से मैंने धैर्य लिया , किसी से समर्पण, किसी से गंभीरता, किसी से व्यवहारिक सोच तो किसी से स्पष्टता | इन सभी का सम्पूर्ण योग जिस व्यक्तित्व की रचना करता है वह "मैं" हूँ |

मेरे एक #सर "जाने वाले हैं" | ये वे सर हैं जो सबकुछ जानते हैं ... सब कुछ | साहित्य विज्ञानं हिंदी अंग्रेजी गद्य पद्य जीवन का सार ... सब कुछ | वो अपना किया सही और गलत सब जानते हैं |

संकेत मिल चुके हैं और वे चिरनिद्रा के अंतिम क्षणों में हैं | मुझमें से थोडा सा "मैं" निकलने वाला है | स्वयं से ऊपर उठकर सोचूं तो उनके साथ जो सारा ज्ञान और अनुभव जायेगा उसे दुनिया के सारे चिप्स भी नहीं समेट सकते | वह ज्ञान भी चला जायेगा जो अभी तक out dated नहीं हुआ है |

तय नहीं कर पा रहा हूँ कि "अंतिम दर्शन" उस पिछली मुलाकात को ही बना रहने दूं या उनको एक बार और देख आऊँ | उनकी उस जीवंत छवि को अपने मानस पटल पर अंकित रहने देना चाहता हूँ उसे Replace नहीं होने देना चाहता | 

सर कही सुनी माफ़ कीजियेगा |

Tuesday, February 3, 2015

अव्यावहारिक मानदंड और उनका टूटना |

अरविन्द जब राजनीती में नहीं थे तब वे ईमानदारी और शुचिता का उच्चतम मानदंड स्थापित करने की बात करते थे...
जैसे: टिकट वितरण में पारदर्शिता, चंदे में पारदर्शिता, RTI के अन्दर आना, पार्टी में अन्दुरुनी लोकतंत्र आदि |
हालाँकि लगता यही था कि ये अव्यवहारिक सी बातें हैं किन्तु उनकी ये बातें दिल को छूती थीं |

और जब उन्होंने ये करने का प्रयत्न किया, और जैसे जैसे उनकी पार्टी बड़ी होती गयी उन्हें भी लगा कि ये बातें धरातल पर नहीं हो सकतीं...
सो लोकसभा चुनाव में आते आते उन्होंने टिकट वितरण में पारदशिता वाला अध्याय समाप्त कर दिया और कमरे के अन्दर बैठ कर ही टिकट बंटे और बिके |
चंदे में हेरफेर और अनाम कंपनियों से चंदे लेने का खेल शुरू |
RTI के अन्दर आने की घोषणा तो कर दी किन्तु कितनी RTI पेंडिंग पड़े हैं इसका जवाब नहीं देंगे |
और आतंरिक लोकतंत्र की बात का अंदाजा इसी बात से लगा लीजिये कि फाउंडर मेम्बर भी टाटा कह गए |
सच यह है कि अरविन्द भी सिर्फ राजनीती कर रहे हैं और जिन लोगों ने उन्हें उनकी बातें सुनकर ज्वाइन किया था वे ठगे से अनुभव करने लगे.
अब जो रह गए हैं वे सिर्फ उनका वोट बैंक हैं.

Wednesday, January 21, 2015

बन्दर और आदमी का सबक.

आज बंदरों का एक झुण्ड आगया अभी सुबह सुबह |
इन्हें समीप से विचरित करते देखना सम्मोहित करता है |
लेकिन प्रतिदिन तो इनका स्वागत करना भारी पड़ सकता है, रोज आये मेहमान किसे अच्छे लगते हैं भला |
मन हुआ कि कुछ नाश्ता करा दूं लेकिन फिर याद आया कि एक दिन की ये दरियादिली रोज की मुसीबत पैदा कर सकती है |
बंदरों में गजब की याददाश्त होती है, ये घर पहचान लेते हैं और फिर जहाँ से भोजन मिलने की आशा होती है वहां ये उत्पात भी मचाने लगते हैं |
अतः इन्हें यदि कुछ देना ही है तो आबादी के बाहर वाले मंदिर पर ही चढ़ावा के रूप में दिया जाये तो बेहतर |
तो प्यारे बंदरों मेरी ओर से तुम्हे तुम्हारा भोजन मिलेगा किन्तु मिलेगा यथोचित स्थान पर ही |

वैसे पिछले साल दिल्ली वालों ने भी कुछ बंदरों को घर पर बिठा लिया था... लगे नोचने, धरना करने, परेशान कर दिया... पर अबकी बार सबक ले चुके हैं दिल्ली के घरवाले |

समझ तो आप गए ही होंगे ||

Sunday, January 11, 2015

बसपा में भगदड़ |

अन्ना आन्दोलन और मोदी युग के कारण जिस प्रकार की हवा चली है उसमें सबसे जयादा नुकसान हुआ है बसपा का |
बसपा में लगभग भगदड़ सी मच गयी है |
बसपा के पतन की पटकथा तो 2012 से ही लिखी जा रही है किन्तु मायावती मुगालते में रहीं कि लोग सपा से परेशान होकर (anti incumbency) के कारण फिर उन्हें ही सत्ता में लायेंगे |
 किन्तु अब भाजपा का उत्थान देख कर माया के होश उड़े हुए हैं | अब उनसे अपना कुनबा संभाले नहीं संभल रहा |
तेज तर्रार और चुनावी राजनीती करने वाले उनके कार्यकर्त्ता जनता की नब्ज भांप कर भाजपा की ओर रुख कर रहे हैं और जो लोग संगठनिक पदों को संभाल रहे हैं वे पिछली मायावती सरकार में इतना खाए-पिए बैठे हैं कि जनता उनसे बात तक नहीं करना चाहती |

उधर मायावती भी जनता के बीच जाना आज भी अपनी तौहीन समझती हैं और रिमोट से ही संगठन चला रही हैं जबकि उनका बेस वोट मोदी के चमत्कार से अभिभूत है |

बचे खुचे लोग फर्जी आंकड़ों से माया को दिवास्वप्न दिखा रहे हैं |

समझने वाली बात ये है कि "जय भीम" और "जय भारत" का नारा लगाने वाले बसपाइयों के लिए "भारत माता की जय" का नारा कोई परायी चीज नहीं है, और तो और "जय श्री राम" कहना भी उन्हें कहीं से कोई दिक्कत नहीं देता |
जय हिन्द ||