Sunday, May 17, 2015

सर

गुरु और माता पिता अनंतकाल तक तो नहीं रह सकते इस धरा पर | उन्हें एक न एक दिन जाना ही होता है | इसमें कुछ भी असामान्य नहीं होता | किन्तु वे लोग जब भी जाते हैं अथवा जायेंगे ऐसा लगेगा जैसे थोडा सा "मैं " गया |

मैं जो बना वह अपने गुरुओं और बड़ों का का 'थोडा-थोडा' हूँ |
मैं थोडा कुमार सर बना, थोडा द्विवेदी सर बना, थोडा श्रीवास्तव सर बना , थोडा वर्मा सर बना !
किसी से मैंने धैर्य लिया , किसी से समर्पण, किसी से गंभीरता, किसी से व्यवहारिक सोच तो किसी से स्पष्टता | इन सभी का सम्पूर्ण योग जिस व्यक्तित्व की रचना करता है वह "मैं" हूँ |

मेरे एक #सर "जाने वाले हैं" | ये वे सर हैं जो सबकुछ जानते हैं ... सब कुछ | साहित्य विज्ञानं हिंदी अंग्रेजी गद्य पद्य जीवन का सार ... सब कुछ | वो अपना किया सही और गलत सब जानते हैं |

संकेत मिल चुके हैं और वे चिरनिद्रा के अंतिम क्षणों में हैं | मुझमें से थोडा सा "मैं" निकलने वाला है | स्वयं से ऊपर उठकर सोचूं तो उनके साथ जो सारा ज्ञान और अनुभव जायेगा उसे दुनिया के सारे चिप्स भी नहीं समेट सकते | वह ज्ञान भी चला जायेगा जो अभी तक out dated नहीं हुआ है |

तय नहीं कर पा रहा हूँ कि "अंतिम दर्शन" उस पिछली मुलाकात को ही बना रहने दूं या उनको एक बार और देख आऊँ | उनकी उस जीवंत छवि को अपने मानस पटल पर अंकित रहने देना चाहता हूँ उसे Replace नहीं होने देना चाहता | 

सर कही सुनी माफ़ कीजियेगा |