Thursday, April 24, 2014

आम आदमी पार्टी के एक कार्यकार्ता का दर्द:

430 सीटों पर उम्मीदवार खड़ा करके अरविन्द केजरीवाल सिर्फ बनारस की सीट पर ध्यान दे रहे हैं. बाकी के 429 क्या बलि का बकरा बनने आये हैं. एक तरफ जहाँ मोदी रोज दो दो सभाएं कर रहे हैं वहीँ अरविन्द केजरीवाल सिर्फ बनारस तक सिमट गए हैं. मोदी अपने-एक एक सांसद को जिताने के लिए हाड़तोड़ मेहनत कर रहे हैं और अरविन्द सिर्फ बनारस की कामयाबी को ही अपना ध्येय बना बैठे हैं.

क्या अरविन्द संसद में अकेले जीत कर जाना चाहते हैं? क्या वे नहीं चाहते कि 50-100 लोग संसद में जीत कर जाएँ? फिर क्यों उन्होंने देश भर के वालंटियर्स को बनारस आने का आह्वान किया है. क्या ऐसा नहीं कर सकते थे कि वालंटियर्स को 50 ऐसी सीट्स पर भेजते जहाँ चुनाव में दम पड़ने से सीट निकलने की आशा थी.

अरविन्द ने बनारस के चुनाव को ईगो की लड़ाई बना ली है और जब भी ईगो की लड़ाई होती है तो dictatorship पैदा होती है. और वही मैं देख रहा हूँ... मैं नहीं जाऊंगा बनारस सर जी मैं नहीं जाऊंगा... !

(आम आदमी पार्टी के एक पदाधिकारी से फ़ोन पर हुई बातचीत के आधार पर)