Tuesday, November 13, 2012

ग्रीन दीपावली और हम !


दीपावली अपने चरम पर है और धमाके तो पिछले एक हफ्ते से अपनी उपस्थिति दिखा रहे हैं। धमाकों के लिए जिन पटाखों का प्रयोग हम करते हैं उनके निर्माण में आज भी कोई ख़ास वैज्ञानिक प्रगति नहीं हुई है और वे आज भी उसी पुरानी विधि और सामग्रियों से निर्मित होते हैं।

इधर पिछले एक दशक से जहाँ पटाखों से होने वाले पर्यावरण नुक्सान सामने से दिखने लगे और चिंता और जागरूकता सामने आने लगीं वहीँ महंगाई बढ़ने के बावजूद पटाखों की बिक्री का वॉल्यूम बहुत बढ़ा है।

विद्यालयों और इन्टरनेट पर ग्रीन दीवाली की अवधारणा बलवती हो रही है तो वहीँ कुछ लोग इसे धार्मिक अंकुश के रूप में देखने लगे हैं।


Saturday, August 18, 2012

गोपाल कांडा नारायण दत्त तिवारी और मदेरणा की नियति ...

जब भी मैं किसी गोपाल कांडा, नारायण दत्त तिवारी या मदेरणा के बारे में विष-वमन देखता हूँ तो एक पक्षीय  ही नजर आता है. क्या इसमें गीतिका शर्मा, उज्ज्वला शर्मा या भंवरी देवी का कोई रोल नहीं ?

मर्यादा और रख-रखाव को तो इन सब ने जोड़ियों में ही तार-तार किया है. इनमें से कोई भी भोला नहीं था. इनमें से एक कामयाब पुरुष था तो दूसरी महत्वाकांक्षी महिला थी जो सीढ़ी दर सीढ़ी ऊंचा जाना चाहती थीं।
इनमें से कोई भी महिला ऐसी नहीं थी जो इन पुरुषों का बायो-डाटा नहीं जानती हो। सभी जानती थीं की ये शादी शुदा हैं और सिर्फ उनका उपभोग करेंगे। पहली बार जब इन्हें "इनडीसेंट प्रोपोजल" मिला था तब इन्होने क्या चुना .....?..? 

नैतिकता और कामयाबी में से इन्होने एक को चुना।

Friday, July 20, 2012

दो पहिये पर तीन

कोई कानून कब बनाया जाता है ? "जब उसकी मांग उठने लगे"! कोई कानून कब संशोधित किया जाता है ? "जब उसका बार बार उल्लंघन होने लगे"!

कानून तोडना अपराध की श्रेणी में आता है लेकिन जो लोग कानून बनाने अथवा उसको संशोधित करने का अधिकार रखते हैं उन तक शायद बात पहुँचाने के लिए उसका टूटना या तोडा जाना एक नियति है.

मैं मोटर वाहन कानून में एक ऐसे ही प्रावधान की बात कर रहा हूँ और वह है मोटर साइकल पर तीन सवारियों के बैठने का चलन। जब भी सड़क पर चेकिंग की जाती है तो मैं देखता हूँ की तीन सवारियों के बैठने के विरुद्ध चालान काटने की संख्या अन्य के अपेक्षा ज्यादा होती है. मेरा मानना है कि बदलते परिवेश में जबकि लोगों का बाहर निकल कर बाजार हाट में जाना बढ़ गया है ऐसे में वे एक ही सवारी पर सुविधानुसार यदि तीन बैठा कर चल सकते हैं तो उन्हें इसकी छूट होनी चाहिए। वैसे भी आजकल दो पहिया वाहन 100 सी सी से लेकर 350 सी सी तक आरहे हैं अतः तीन सवारियों को बैठाने में व्यावहारिक कठिनाई नहीं आती है।


मैं भी अभी किसी अंतिम निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा हूँ लेकिन जनभावना और आवश्यकता को देखते हुए मैंने सोचा कि इस विषय को सुधिजन के साथ शेयर किया जाये। 
जब भी जनता का चालान तीन सवारियों पर कटता है तो उन्हें चुभता है उनका तर्क है कि  जब कार वाले बस वाले सीटों की संख्या से ज्यादा सवारियां बैठा सकते हैं तो फिर दो पहिया वाहन वालों को ही क्यों परेशान किया जाता है। 

वैसे अगर आप किसी थाने  के पास रहते हैं तो अकसर ये देखेंगे कि छोटे-मोटे आपराधिक प्रवृत्ति के हिस्ट्री शीटर को उसके घर से पकड़ के लाने के लिए स्वयं पुलिस वाले भी अपनी मोटर साइकल से ही जाते हैं और उसे घर से उठा कर मोटर साइकिल पर बीच में बैठा कर लाते हैं। यानी नियम चाहे जो कहता हो सुविधा जनक स्थिति यही है की तीन सवारियां बैठाई जा सकती हैं।

आपके सुझाव का आकांक्षी :)


विपरीत विश्व प्रवाह के निज नाव जा सकती नहीं,
कल काम में आती नहीं आज की बातें कई।

Sunday, July 8, 2012

फेसबुक ट्विटर और ब्लॉग

कहा गया है कि फेसबुक और ट्विटर अखबार की तरह हैं जिसे रोज लिखा जाता है और रोज पढ़ा जाता है जबकि ब्लॉग पुस्तक की तरह है. अतः अब प्राथमिकता बदलूँगा और ब्लॉग को ज्यादा समय दूंगा। जय हिंद।