Tuesday, February 3, 2015

अव्यावहारिक मानदंड और उनका टूटना |

अरविन्द जब राजनीती में नहीं थे तब वे ईमानदारी और शुचिता का उच्चतम मानदंड स्थापित करने की बात करते थे...
जैसे: टिकट वितरण में पारदर्शिता, चंदे में पारदर्शिता, RTI के अन्दर आना, पार्टी में अन्दुरुनी लोकतंत्र आदि |
हालाँकि लगता यही था कि ये अव्यवहारिक सी बातें हैं किन्तु उनकी ये बातें दिल को छूती थीं |

और जब उन्होंने ये करने का प्रयत्न किया, और जैसे जैसे उनकी पार्टी बड़ी होती गयी उन्हें भी लगा कि ये बातें धरातल पर नहीं हो सकतीं...
सो लोकसभा चुनाव में आते आते उन्होंने टिकट वितरण में पारदशिता वाला अध्याय समाप्त कर दिया और कमरे के अन्दर बैठ कर ही टिकट बंटे और बिके |
चंदे में हेरफेर और अनाम कंपनियों से चंदे लेने का खेल शुरू |
RTI के अन्दर आने की घोषणा तो कर दी किन्तु कितनी RTI पेंडिंग पड़े हैं इसका जवाब नहीं देंगे |
और आतंरिक लोकतंत्र की बात का अंदाजा इसी बात से लगा लीजिये कि फाउंडर मेम्बर भी टाटा कह गए |
सच यह है कि अरविन्द भी सिर्फ राजनीती कर रहे हैं और जिन लोगों ने उन्हें उनकी बातें सुनकर ज्वाइन किया था वे ठगे से अनुभव करने लगे.
अब जो रह गए हैं वे सिर्फ उनका वोट बैंक हैं.