Monday, June 8, 2015

जनता को आइना कौन दिखायेगा ?

जनता को आइना कौन दिखायेगा ??
जनता में भी तमाम विकृतियाँ आगई हैं, मुफ्तखोरी उनके रग रग में बस गयी है, जिसका फायदा राजनेता उठा रहे हैं, उन्हें भारत के खजाने में से साइकिल, चावल, टीवी, wifi मुफ्त में देकर अरबों खरबों की संपत्ति पर कुंडली मार लेते हैं |

चुनावी राजनीती करने वाले नेता लोग जनता को आइना नहीं दिखा सकते | वो काम तो गाँधी, जय प्रकाश नारायण जैसे लोग ही कर सकते हैं, किन्तु दुर्भाग्यवश इनके आंदोलनों को कोई न कोई शातिर अपने लिए इस्तेमाल कर लेता है |
अभी अन्ना को ही लीजिये, सब कुछ ठीक था लेकिन एक शातिर कजरी ने इस आन्दोलन को सैबोटाज कर लिया और परिणाम आपके सामने है |
अन्ना जनता को जिस गन्दगी से बचाना चाहते थे कजरी उसी गन्दगी (मुफ्त मुफ्त मुफ्त का नारा) के सहारे मुख्यमंत्री बनगए |

Saturday, June 6, 2015

आरक्षण |

यदि आप जाति के आधार पर आरक्षण लेकर सुविधा उठाएंगे तो फिर उसके ताने भी सुनने ही होंगे , स्वाभिमान कहाँ से आयेगा.
यदि आप निरपेक्ष भाव से समाज का उत्थान चाहते हैं तो आरक्षण को आर्थिक आधार पर कर देने में क्या गलत है ??
मैं दलित नहीं हूँ लेकिन अपने कई दलित मित्रों से गरीब हूँ. मेरे बच्चे की फीस मैं मुश्किल से दे पाता हूँ तो क्या मुझ पर तरस नहीं आती आपको?
क्या एक अधिकारी का बच्चा आरक्षण लेता रहेगा और एक उच्च जाति का गरीब सुविधाओं से वंचित रहेगा ?? यदि इतिहास में दलितों के साथ अन्याय हुआ तो क्या अब आप वही चक्र शुरू करना चाहते हैं ??
अंग्रेजों ने हमको पीटा , मारा, काटा, हम पर राज किया , तो क्या आज कोई अंग्रेज मिल जाये तो हम उसके साथ दुर्व्यवहार करें?? वो जमाना और था यह जमाना और है , आज हम भेदभाव नहीं करते और न ही चाहते हैं कि हमारे साथ भेदभाव हो |
जातिगत आधार पर जो आरक्षण है वह भी तो स्वयम दलितों में भेदभाव पैदा कर रहा है ... जो आगे निकल गए वे स्वयं अपने ही गरीब दलितों का हक़ मर कर आरक्षण का लाभ लिए जारहे हैं. इसलिए यदि सच्चा न्याय चाहते हो तो आर्थिक आधार को अपना लो और आरक्षण को सिर्फ पच्चीस पर्सेंट कर दो. यदि आपको भरोसा है कि आपकी जाती गरीब है तो ज्यादा लाभ उसे ही मिलेगा.
आरक्षण तो सिर्फ दस वर्ष के लिए था... तो फिर इसे अब क्यों बढवाना चाहते हो ??

पेंटिंग |

वो काफी दिनों से एक पेंटिंग बना रहा था | थोड़े दिनों बाद ही पता चल गया कि कोई ख़ास ज्ञान है नही उसे पेंटिंग बनाने का किन्तु उसके पास कैनवास, रंग और ब्रश सब कुछ था |

मेरे पास सिवाय कमियां निकालने के और कुछ काम नहीं था | मैं करता भी क्या, पेंटिंग बनाने का अधिकार तो उसे दिया गया था न |

धीरे धीरे लोगों ने भी महसूस किया कि ये नहीं बना सकते पेंटिंग, इनके बस की नहीं है, ये सिर्फ टाइम पास कर रहे हैं तो जूरी ने ये काम मुझे सौंप दिया | मेरी मजबूरी थी कि उस बेकार, बदरंग, अधबनी पेंटिंग को ही सुधारुं | और कोई विकल्प नहीं था | मुझे उसका थीम भी बदलना था, तो मैंने पहले उसमें ही सुधार करने का काम शुरू किया |
अभी चार दिन बीते नहीं कि वे ही ज़ालिम मुझसे सवाल कर रहे हैं कि पेंटिंग दिखाओ |
मैं क्या करूँ?? उन्हें अनसुना कर पेंटिंग पर अपना काम जारी रखूं या काम छोड़कर सफाई देता रहूँ?
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मेरी इस कहानी से कहीं आपको देश (पेंटिंग), कांग्रेस और वर्तमान में मोदी तो नहीं याद आरहे ?
आ ही रहे होंगे | आखिर कांग्रेस से उस पेंटिंग बनाने का अधिकार छीन कर आपने ही तो मोदी को सौंपा है | :)