Monday, May 18, 2015

गोला बारूद बनाम मेक इन इंडिया |

युद्ध बहुत महंगा होता है ... एक मिसाइल जो हम दागते हैं वह 10 करोड़ तक का हो सकता है | एक तोप का गोला भी लाखों का पड़ जाता है | बन्दुक से निकली एक गोली सैकड़ों रुपये की होती है | और इस सब का भण्डारण भी महंगा होता है |
जबकि एक स्कूल और अस्पताल का खोला जाना और उसे चलाया जाना अपेक्षाकृत सस्ता पड़ता है और उपयोगी भी रहता है |
हथियार बनाने वाली एक बहुत बड़ी लॉबी है जिसका धंधा ही सिर्फ डर और अविश्वास पर चलता है |
दो देशो या गुटों के बीच जब युद्ध होता है तो दोनों तरफ से लगभग एक ही 'मेक' के हथियार होते हैं और उनके 'मैन्युफैक्चरर' भी एक ही होते हैं |
यानी वे तो दोनों के यार हैं | बस पागलपन तो लड़ने वालों पर ही सवार होता है |

आजकल सुनने में आरहा है कि हमारे देश में सिर्फ 20 दिन का गोला बारूद ही बचा है और ऐसा माहौल बनाया जारहा है कि सरकार को अपना आयुध भंडार बढ़ाना चाहिए | ये हथियार लॉबी का ही प्रोपेगंडा होसकता है जो सोशल मीडिया के जरिये सरकार पर दबाव बनवा कर अपना माल बेचना चाह रही है | मोदी जी की प्राथमिकतायें अलग हैं और वे हथियार खरीद कर दलाली लेने के बजाये मेक इन इंडिया और डिजिटल इंडिया जैसे अपने महती कार्यक्रमों पर धन लगाना चाहते हैं |
#जयहिन्द 

Sunday, May 17, 2015

सर

गुरु और माता पिता अनंतकाल तक तो नहीं रह सकते इस धरा पर | उन्हें एक न एक दिन जाना ही होता है | इसमें कुछ भी असामान्य नहीं होता | किन्तु वे लोग जब भी जाते हैं अथवा जायेंगे ऐसा लगेगा जैसे थोडा सा "मैं " गया |

मैं जो बना वह अपने गुरुओं और बड़ों का का 'थोडा-थोडा' हूँ |
मैं थोडा कुमार सर बना, थोडा द्विवेदी सर बना, थोडा श्रीवास्तव सर बना , थोडा वर्मा सर बना !
किसी से मैंने धैर्य लिया , किसी से समर्पण, किसी से गंभीरता, किसी से व्यवहारिक सोच तो किसी से स्पष्टता | इन सभी का सम्पूर्ण योग जिस व्यक्तित्व की रचना करता है वह "मैं" हूँ |

मेरे एक #सर "जाने वाले हैं" | ये वे सर हैं जो सबकुछ जानते हैं ... सब कुछ | साहित्य विज्ञानं हिंदी अंग्रेजी गद्य पद्य जीवन का सार ... सब कुछ | वो अपना किया सही और गलत सब जानते हैं |

संकेत मिल चुके हैं और वे चिरनिद्रा के अंतिम क्षणों में हैं | मुझमें से थोडा सा "मैं" निकलने वाला है | स्वयं से ऊपर उठकर सोचूं तो उनके साथ जो सारा ज्ञान और अनुभव जायेगा उसे दुनिया के सारे चिप्स भी नहीं समेट सकते | वह ज्ञान भी चला जायेगा जो अभी तक out dated नहीं हुआ है |

तय नहीं कर पा रहा हूँ कि "अंतिम दर्शन" उस पिछली मुलाकात को ही बना रहने दूं या उनको एक बार और देख आऊँ | उनकी उस जीवंत छवि को अपने मानस पटल पर अंकित रहने देना चाहता हूँ उसे Replace नहीं होने देना चाहता | 

सर कही सुनी माफ़ कीजियेगा |