Thursday, November 20, 2014

ऑनलाइन ट्रेडिंग

यदि आज मैं आपको अस्सी के दशक के उन सभी बड़े नेताओं के बयान उलब्ध करा दूं जिन्होंने कंप्यूटर का विरोध किया था तो आपके मन में उनके प्रति कैसे भाव आयेंगे??
खैर छोडिये, कंप्यूटर का युग आना था तो आया ही |

ऐसा ही एक विरोध मैं ऑनलाइन ट्रेडिंग के खिलाफ कुछ लोगों में देख रहा हूँ...
ये खुदरा व्यापारी हैं जिन्हें प्रथम दृष्टया ये नयी सुविधा 'बला' के रूप में दिख रही है |

खैर छोडिये, ऑनलाइन ट्रेडिंग का युग आगया है और ये सर चढ़ कर बोलेगा ही.
ऑनलाइन ट्रेडिंग उपभोक्ता उन्मुखी है अतः इसका चलन बढ़ता ही जायेगा. विरोध करने से कुछ नहीं होगा.. अपितु कालांतर में आपको अपने इस विरोध पर शर्म ही आएगी... 

Monday, June 2, 2014

दही लो दही...

दही लो दही...
पिछले 30 वर्षों से यही आवाज़ सुनता आरहा हूँ... साइकिल पर एक cane में दही रख कर बेचते हैं...
करीब 20 साल पहले इनके आवाज़ लगाने के अंदाज़ की हम बच्चे नक़ल भी करते थे... "दही लो दही" :)
अभी हाल ही में इनका फोटो लिया... मैंने बताया कि फेसबुक पर डालूँगा, बोले साहब जो चाहे कर लेना मुझे क्या पता...
हमेशा खुश रहते हैं और थोड़ी बहुत खेती किसानी करते हैं.
नाम बताया था इन्होने
लेकिन नाम से क्या करना... ऐसे लोगों के काम बोलते हैं.

Thursday, April 24, 2014

आम आदमी पार्टी के एक कार्यकार्ता का दर्द:

430 सीटों पर उम्मीदवार खड़ा करके अरविन्द केजरीवाल सिर्फ बनारस की सीट पर ध्यान दे रहे हैं. बाकी के 429 क्या बलि का बकरा बनने आये हैं. एक तरफ जहाँ मोदी रोज दो दो सभाएं कर रहे हैं वहीँ अरविन्द केजरीवाल सिर्फ बनारस तक सिमट गए हैं. मोदी अपने-एक एक सांसद को जिताने के लिए हाड़तोड़ मेहनत कर रहे हैं और अरविन्द सिर्फ बनारस की कामयाबी को ही अपना ध्येय बना बैठे हैं.

क्या अरविन्द संसद में अकेले जीत कर जाना चाहते हैं? क्या वे नहीं चाहते कि 50-100 लोग संसद में जीत कर जाएँ? फिर क्यों उन्होंने देश भर के वालंटियर्स को बनारस आने का आह्वान किया है. क्या ऐसा नहीं कर सकते थे कि वालंटियर्स को 50 ऐसी सीट्स पर भेजते जहाँ चुनाव में दम पड़ने से सीट निकलने की आशा थी.

अरविन्द ने बनारस के चुनाव को ईगो की लड़ाई बना ली है और जब भी ईगो की लड़ाई होती है तो dictatorship पैदा होती है. और वही मैं देख रहा हूँ... मैं नहीं जाऊंगा बनारस सर जी मैं नहीं जाऊंगा... !

(आम आदमी पार्टी के एक पदाधिकारी से फ़ोन पर हुई बातचीत के आधार पर)

Wednesday, April 2, 2014

बहुत बदल गए अरविन्द... तो भाई हम भी बदल गए... गुड बाय कह दिया...

क्या आपको पता है कि आम आदमी पार्टी ने अपने संविधान में महज सवा साल में ही कितने संशोधन कर दिए है.

अरविन्द केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी के संविधान को सार्वजनिक करते हुए इसे अपने वेबसाइट पर भी डाला था और उसको पढ़ कर लाखों लोग पार्टी में जुड़े...
पार्टी में जिस स्वराज की बात की गयी थी उससे प्रभावित होकर मैं भी जुड़ा था. लोकसभा प्रत्याशियों के चयन में जिस पारदर्शिता की बात की गयी थी और जिसकी गारंटी पार्टी के संविधान में भी दी गयी थी वह मूर्त रूप में कहीं प्रदर्शित नहीं हुई. सवाल किया तो पता चला की पार्टी ने तो 31 जनवरी 2014 को ही संशोधन कर दिया है नीचे की सारी शक्तियां पोलिटिकल अफेयर्स समिति को दे दिए गए हैं. . क्यों भाई इसका प्रचार क्यों नहीं किया अरविन्द जी ने.
यही नहीं, कहा था कि लोकसभा के प्रत्याशियों के चयन से पहले एक पैनल बना कर वेबसाइट पर डाला जायेगा और फिर उस क्षेत्र के लोगों से राय ली जाएगी... हमने तो वेबसाइट पर डायरेक्ट प्रत्याशी चयन की घोषणा ही देखी...
बहुत बदल गए  अरविन्द... तो भाई हम भी बदल गए... गुड बाय कह दिया...

Sunday, March 30, 2014

नेक लोगों द्वारा दिए गए चंदे के वीभत्स बंदरबांट की आशंका.

आम आदमी पार्टी ने दान की पारदर्शिता पर अच्छी पहल की है. उसकी इस पहल का लाभ यह हुआ कि अन्य दल भी अब इस ओर कुछ सोचेंगे. अरविन्द केजरीवाल बार-बार लोगों से अपील करते हैं कि पार्टी को चुनाव लड़ना है और धन की आवश्यकता है. उनकी अपील का असर होता है और ऑनलाइन डोनेशन प्रतिदिन लाखों में आजाता है.

आम जन ने दिल खोल कर #AAP को दान दिया है. उसकी दान दाताओं की सूचि देख कर लगता है कि वाकई लोग अपनी नेक कमाई में से पार्टी को चंदा दे रहे हैं.

लेकिन प्रकारांतर से एक बात की उत्सुकता हो रही है कि आम आदमी पार्टी इन चंदों का करती क्या है? किन मदों में खर्च करती है और वे कितने जरूरी या गैर जरूरी खर्चे होते हैं.

पार्टी ने लोकसभा चुनावों में बिना तैयारी के ही 350 प्रत्याशी उतार दिए हैं. ज्यादातर प्रत्याशी क्षेत्र में अपनी हालत देख कर अपना चुनाव अभियान ठप्प कर चुके हैं लेकिन नाममात्र के लिए गतिविधियाँ चला कर और पदाधिकारियों से मिलीभगत करके झूठी रिपोर्टें ऊपर भिजवा रहे हैं कि प्रत्याशी को धन की कमी आड़े आरही है अतः डोनेशन भिजवाया जाये...!

और मुझे पूरी आशंका है कि इस तरह से नेक लोगों द्वारा दिए गए चंदे का एक वीभत्स बंदरबांट होजायेगा.

क्या अरविन्द इस पर रोक लगाने में सक्षम होंगे?? क्यों न खर्चे को भी पारदर्शी किया जाये.

सत्तु

सत्तु

सत्तु सात प्रकार के धान्य मिलाकर बनाया जाता है .ये है मक्का , जौ , चना , अरहर ,मटर , खेसरी और कुलथा .इन्हें भुन कर पीस लिया जाता है

आयुर्वेद के अनुसार सत्तू का सेवन गले के रोग, उल्टी, आंखों के रोग, भूख, प्यास और कई अन्य रोगों में फायदेमंद होता है। इसमें प्रचुर मात्रा में फाइबर, कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन, कैल्शियम, मैग्नीशियम आदि पाया जाता है। यह शरीर को ठंडक पहुंचाता है।

जौ का सत्तू : यह जलन को शांत करता है। इसे पानी में घोलकर पीने से शरीर में पानी की कमी दूर होती है। साथ ही बहुत ज्यादा प्यास नहीं लगती। यह थकान मिटाने और भूख बढाने का भी काम करता है। यह डायबिटीज के रोगियों के लिए काफी फायदेमंद होता है। यह वजन को नियंत्रित करने में भी मददगार होता है।

चने का सत्तू : चने के सत्तू में चौथाई भाग जौ का सत्तू जरूर मिलाना चाहिए। चने के सत्तू का सेवन चीनी और घी के साथ करना फायदेमंद होता है। इसे खाने से लू नहीं लगती।

कैसे करें सेवन

सत्तू को ताजे पानी में घोलना चाहिए, गर्म पानी में नहीं।

सत्तू सेवन के बीच में पानी न पिएं।

इसे रात्रि में नहीं खाना चाहिए।

सत्तू का सेवन अधिक मात्रा में नहीं करना चाहिए। इसका सेवन सुबह या दोपहर एक बार ही करना सत्तू का सेवन दूध के साथ नहीं करना चाहिए।

कभी भी गाढे सत्तू का सेवन नहीं करना चाहिए, क्योंकि गाढा सत्तू पचाने में भारी होता है। पतला सत्तू आसानी से पच जाता है ।

इसे ठोस और तरल, दोनों रूपों में लिया जा सकता है।

यदि आप चने के सत्तू को पानी, काला नमक और नींबू के साथ घोलकर पीते हैं, तो यह आपके पाचनतंत्र के लिए फायदेमंद होता है .।

सत्तु के सेवन से ज़्यादा तैलीय खाना खाने से होने वाली तालीफ़ ख़त्म हो जाती है और तेल निकल जाता है .।

इसमें बहुत पोषण होता है इसलिए बढ़ते बच्चों को ज़रूर दे ।

Saturday, March 29, 2014

 असफल नहीं हुआ और न ही भटका. उसका प्राथमिक उद्देश्य पूरा हुआ था कि सत्ता इलीट क्लास से निकल कर गाँव और जमीन से निकले लोगों के हाथ में आगई. लालू , पासवान, आदि जब इस आन्दोलन से निकले थे तब वे मासूम ही थे... हाँ बाद में उन्होंने अच्छा उदहारण नहीं पेश किया और वे वैसे ही होगये जिनके खिलाफ खड़े हुए थे. वही परिवारवाद के पोषक और पूंजीवाद के और बड़े समर्थक बन गए.  

राजनीती तो हम दुसरे दलों में भी रह कर ही सकते थे न ?

#AAP के संगठन में आन्दोलनकारी लोगों की अपेक्षा जब से राजनैतिक लोगों की संख्या बढ़ी है तब से अशुभ संकेत मिलने शुरू होगये हैं...

एक आन्दोलन दम तोड़ रहा है और एक राजनीती फल फुल रही है ..

पर राजनीती तो हम दुसरे दलों में भी रह कर ही सकते थे न ?

Wednesday, January 29, 2014

इन्हें आजमाया जाये इस बार !

पंद्रह साल पहले हमारा युवा तब शिशु या किशोर रहा होगा लेकिन तब मैं 'युवा' था.

माना पिछले दस सालों में घोटाले और बेईमानी का अम्बार लग गया , लेकिन उसके पहले के पांच साल भी कोई राम-राज नहीं था, भाजपा राज ही था.

पांच साल में ही जनता को ऐसा त्रस्त कर दिया था इन बगुला-भगतों ने कि जनता ने इन्हें सजा देने के लिए उसी पुरानी कांग्रेस को चुन लिया और दस सालों तक विकल्प-हीनता की स्थिति में उसी कांग्रेस को ढोते रहे.

लेकिन अब इश्वर की महिमा से एक विकल्प मिल गया है. आम आदमी पार्टी वाले अनुभवहीन हो सकते हैं लेकिन भ्रष्ट नहीं हैं. और कुछ मुद्दों पर वे शीघ्र ही और मुखरित होकर सामने आयेंगे.

इन्हें आजमाया जाये इस बार !

Sunday, January 12, 2014

संस्तुति लेने में लगे हैं... #AAP

लगता है सूचना क्रांति ने अपना काम कर दिया है. शहरों को गावों से जोड़ दिया है. विचारों   के प्रवाह का मार्ग प्रशस्त किया है.

जिस भी गाँव में जाता हूँ आम आदमी पार्टी के बारे में बताना नहीं पड़ता. लोग परिचय से आगे की बात से प्रारम्भ करना चाहते हैं.

जीत सुनिश्चित है, सिर्फ लोगों तक पहुच कर उनके साथ बैठने की बात है, और वह काम तो हम और हमारे volunteers कर ही रहे हैं.

इस समय जबकि सभी नेता अपनी टिकट के फेर में दिल्ली या लखनऊ बसे हैं वहीँ #AAP के लोकसभा प्रत्याशी बनने के इच्छुक लोग टिकट पाने के लिए हर विधानसभा के मतदाताओं से संस्तुति लेने में लगे हैं.
जय हो !