दीपावली अपने चरम पर है और धमाके तो पिछले एक हफ्ते से अपनी उपस्थिति दिखा रहे हैं। धमाकों के लिए जिन पटाखों का प्रयोग हम करते हैं उनके निर्माण में आज भी कोई ख़ास वैज्ञानिक प्रगति नहीं हुई है और वे आज भी उसी पुरानी विधि और सामग्रियों से निर्मित होते हैं।
इधर पिछले एक दशक से जहाँ पटाखों से होने वाले पर्यावरण नुक्सान सामने से दिखने लगे और चिंता और जागरूकता सामने आने लगीं वहीँ महंगाई बढ़ने के बावजूद पटाखों की बिक्री का वॉल्यूम बहुत बढ़ा है।
विद्यालयों और इन्टरनेट पर ग्रीन दीवाली की अवधारणा बलवती हो रही है तो वहीँ कुछ लोग इसे धार्मिक अंकुश के रूप में देखने लगे हैं।
विद्यालयों और इन्टरनेट पर ग्रीन दीवाली की अवधारणा बलवती हो रही है तो वहीँ कुछ लोग इसे धार्मिक अंकुश के रूप में देखने लगे हैं।