Tuesday, August 13, 2013

थोडा झटका तो दीजिये..

देश को सभी बदलना चाहते हैं, वर्तमान से कोई संतुष्ट नहीं है. लेकिन बदलाव का स्वरुप क्या हो इस पर सहमती नहीं बनने की वजह से ही घूम फिर कर वही लूटेरे आजाते हैं. 
पहले तो यह तय करना पड़ेगा कि भ्रष्टाचार ही प्रथम वह राक्षस है जिससे निजात पाना है. बाकी समस्याएं अपने आप ख़तम होजायेंगी.
चाहे अलगाव वाद हो या वर्चस्ववाद हो या क्षेत्रवाद , नक्सलवाद या अतिवाद ये सभी मूल रूप से भ्रष्टाचार के कोख से ही जन्म लेते हैं.
विचार करें  और भ्रष्टाचार को सबसे पहले टारगेट करें.
आप जिस भी पार्टी के समर्थक हो उनसे भ्रष्टाचार निवारण पर उनके विचार और उनके आचरण पर सवाल करिए और उत्तर मांगिये कि उन्होंने इस पर क्या किया.
जन लोकपाल, काला धन वापसी, चुनाव सुधार और राईट टू  रिजेक्ट, राईट टू रिकॉल और सूचना का अधिकार आदि को ये दल क्यों नहीं स्वीकार करते हैं.
हम नहीं कहते कि आप अपनी पार्टी से बगावत करिए लेकिन पूछ तो लीजिये कि अगर संसद में वे अपनी हितों पर सत्ताधारी पार्टी के साथ ही दिखेंगे तो फिर हम बदलाव लाने के लिए उन्हें ही क्यों चुनें??
अगर आपके वोट से कोई बदलाव नहीं आ पा रहा है तो अपना वोट बदल दीजिये इस बार.
थोडा झटका तो दीजिये.