Sunday, March 12, 2017

यूपी 2017 के सबक !

उत्तर प्रदेश चुनाव के बारे में जब भी मुझसे किसी ने भाजपा के लिए संभावना पूछा तो मैंने यही कहा कि आप इस बात से आकलन करें के जिन्होंने लोकसभा 2014 में मोदी को वोट दिया था क्या वह मोदी से इतना नाराज हो गए हैं कि अब दोबारा वोट ना दें ?? चाहे वह नोट बंदी का पीड़ादायक मामला हो या अन्य मामले हो, जिनको यह अनुमान था कि उनका वोटर उनसे रूठा नहीं है वह हमेशा से यह जानते थे के ढाई सौ से ऊपर तो आने ही आने हैं।
बसपा के लिए मैं शुरू से यही कहता था कि 2012 में विधानसभा चुनाव में उनकी 80 सीटें थी और 2014 के लोकसभा में उन्हें एक भी सीट नहीं मिली थी । इस अनुमान के आधार पर कि उनसे कोई नया वोटर जुड़ा नहीं है बल्कि कुछ कद्दावर नेता जो पार्टी से बाहर निकल रहे हैं उनके कारण बहन जी को निश्चित रूप से 80 से तो कम ही सीटें मिलनी हैं । यह आकलन भी ठीक ही रहा ।

समाजवादी पार्टी के दुर्दिन तब से शुरू हुए जब उन्होंने इकट्ठा 100 सीटें कांग्रेस पार्टी को दे दिए। उस कांग्रेस को जो अब जमीन पर कही नहीं है जिसमें सिर्फ नेता बचे हैं कार्यकर्ता नहीं बचे हैं । वे चाहते तो सौ सीटों में दो तीन अन्य क्षेत्रीय दलों को शामिल कर सकते थे लेकिन अखिलेश अनुभवहीन निकले और गलत समय पर कुनबे में युद्ध छेड़ बैठे ।
उधर कांग्रेस के बचे-खुचे वोटर उस समय नाराज हो गए जब उन्हें समाजवादी पार्टी को वोट देने के लिए संदेश दिया गया। यह वह लोग थे जो कांग्रेस के दुर्दिन में भी उसके साथ इसलिए थे क्योंकि वह किसी भी प्रकार से समाजवादी पार्टी को पसंद नहीं करते थे । कांग्रेस का चाहे मुसलमान वोटर हो चाहे हिंदू वोटर हो वह सपा और भाजपा से दूरी बनाए रखता था लेकिन सपा से गठबंधन होते ही उनका दिल टूट गया, क्योंकि वह खाट सभाओं में भी कम से कम पार्टी की बात तो रखते थे, वह गांव-गांव जा रहे थे और किसानों के बीच अपनी बात रख रहे थे, लेकिन गठबंधन होने के बाद उन्होंने ठगा सा महसूस किया और कांग्रेस का मुसलमान वोटर जो कि घोर सपा विरोधी था वह सपा को हराने के लिए बसपा को वोट कर गया और उसका हिंदू वोटर मोदीमय हो गया।
और एक सबसे बड़ी बात यह रही कि अखिलेश, राहुल और मायावती ने अपनी सभाओं में नोट बंदी से उत्पन्न परेशानियों को भुनाना चाहा। उनकी सभाओं में इस पर तालियां बजती तो वह इसे अपनी बात पर मोहर समझते जबकि असल बात यह थी कि इस देश की जनता ने नोटबंदी को अपने हित में माना है और नोट बंदी का विरोध करने वाले नेताओं को उन्होंने हिकारत की दृष्टि से देखा ।
जब आप atm की लाइन में 200 लोगों के मरने पर दुख व्यक्त करते हैं तो वही जनता यह देखती है के यहां 200 लोग तो रोज बुखार से मर जाते हैं अस्पतालों में।

रही बात मायावती की तो वह तो अपनी जनता से पिछले 10 साल से डिस्कनेक्ट हैं और उनके वोटर में क्या संदेश जा रहा है, इसका उन्होंने संज्ञान नहीं लिया क्योंकि वह सोशल मीडिया का इस्तेमाल नहीं करती हैं इसके कारण पिछले 10 साल में जो नए वोटर बने हैं जो कि उनके समाज से आते हैं वह अपनी लीडर तक अपनी बात पहुंचाने का कोई जरिया नहीं देख पाते जबकि मोदी की पहुँच इस सोशल मीडिया के माध्यम से घर घर तक बन गई है।

सबक यही है कि रचनात्मक विपक्ष की भूमिका निभाइए और अपनी बारी की प्रतीक्षा कीजिये | मोदी को सूट-बूट पर मत घेरिये, उनकी विदेश यात्राओं का मजाक मत उड़ाइए, मोदी पर तंज मत कसिये क्योंकि वह आपके खिलाफ जाता है, क्योंकि मोदी ने जनता में अपने बारे में इतना तो पैठा ही दिया है कि भले उनसे गलती होजाए किन्तु वे भ्रष्ट नहीं हैं |

जनता को और क्या चाहिए |

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